Holy scriptures

Wednesday, August 5, 2020

कबीर साहिब का जीवन

परमेश्वर कबीर बन्दी छोड़ जी का धरती पर अवतरण सन् 1398 विक्रमी संवत् 1455 ज्येष्ठ मास पूर्णमासी (शुद्धि) को काशी शहर के बाहर ‘‘लहर तारा‘‘ नामक सरोवर में कमल के फूल पर शिशु रूप में हुआ। आकाश से एक प्रकाश का गोला-सा आया और ‘‘लहर तारा‘‘ सरोवर के एक कोने में समाप्त हो गया। इस के प्रत्यक्ष दृष्टा स्वामी अष्टानन्द शिष्य स्वामी रामानन्द जी थे। वे प्रतिदिन सुबह वहाँ स्नान करके अपने गुरू स्वामी रामानन्द जी के मार्ग दर्शनानुसार साधना किया करते थे। यह दृश्य देखकर स्वामी अष्टानन्द जी को बड़ा आश्चर्य हुआ क्योंकि जब अष्टानन्द जी ने उस प्रकाश पुंज्ज को देखा तो उसकी चर्म दृष्टि उस तेज को सहन न कर सकी। आँखें बन्द हो गई। उस समय उनको एक शिशु का रूप दिखाई दिया जैसे हम कभी सूर्य की ओर देखते हैं तो हमारी आँखें सूर्य के प्रकाश को सहन नहीं कर पाती। आँखें बन्द करते हैं या सूर्य से दूसरी ओर करते हैं तो हमें सूर्य का प्रकाश रहित आकार दिखाई देता है।

सी प्रकार अष्टानन्द जी को उस प्रकाश पंुज्ज में शिशु रूप दिखाई दिया था। इसका वास्तविक रहस्य जानने के लिए स्वामी अष्टानन्द जी उसी समय उठ कर स्वामी रामानन्द जी के पास चले गये।

काशी शहर में एक नीरू (नूर अली) नामक जुलाहा रहता था। उसकी पत्नी का नाम नीमा (नीयामत) था। वे निःसंतान थे। वे इसी जन्म में हिन्दू ब्राह्मण थे। उनको बलपूर्वक मुसलमानों ने धर्म परिवर्तन करके मुसलमान बना दिया था। उनका गंगा में स्नान करना भी मना कर दिया था। वर्षा के मौसम में गंगा दरिया का स्वच्छ जल लहरों द्वारा उछल कर गऊ घाटों में से बाहर आकर तारा नाम नीचे स्थान में भर जाता था जो एक सरोवर का रूप ले लेता था। पूरे वर्ष वह जल स्वच्छ रहता था। इस कारण से उस तालाब को ‘‘लहर तारा‘‘ नाम से जाना जाने लगा। नीरू जिनका पूरा नाम नूर अली रखा गया था परन्तु वे नीरू नाम से ही अधिक जाने जाते थे तथा उनकी पत्नी ‘‘नीमा‘‘ जिनका पूरा नाम नीयामत रखा गया था परन्तु ‘‘नीमा‘‘ नाम से अधिक प्रसिद्ध हुई।

वे दोनों पति-पत्नी भी उस लहर तारा सरोवर में प्रतिदिन ब्रह्म महूर्त में स्नान करने के लिए जाते थे। (ब्रह्म महूर्त सूर्य उदय से लगभग 1) घण्टा पूर्व के समय को कहा जाता है) उन्होंने उस सरोवर में कमल के फूल पर एक शिशु को देखा और तुरन्त उठाकर अपने घर ले गये। जुलाहे के घर पर पलने की लीला करने व बड़े होकर जुलाहे का कार्य करके लीला करने के कारण परमेश्वर कबीर जी जुलाहा (धाणक) कहलाऐ।

मंत्र से भी ठीक नहीं हुआ था 
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Location:-Bundi, Rajasthan 323001, India
 🔴🔴अधिक जानकारी के लिए अवश्य देखे जगत गुरु रामपाल जी महाराज जी के मंगल प्रवचन साधना tv पर रात्रि 7:30 से 8:30  तक।

Wednesday, July 15, 2020

शिवरात्रि का व्रत कितना लाभदायक है?

शिवरात्रि का व्रत कितना लाभदायक है?

लोकवेद दंत कथा के आधार पर विवरण

मान्यता है कि जो भी जातक महाशिवरात्रि का व्रत रखते हैं उन्हें नरक से मुक्ति मिलती है और आत्मा की शुद्धि होती है। इस दिन जहां- जहां भी शिवलिंग स्थापित है, उस स्थान पर भगवान शिव का स्वयं आगमन होता है। इसलिए शिव की पूजा के साथ शिवलिंग की भी विशेष आराधना करने की परंपरा है। शिव अपने भक्तों को सच्चे दिल से आशीर्वाद देते हैं।

पवित्र सद्ग्रन्थों के अनुसार
श्री ब्रम्हा विष्णु महेश जी तीनो श्री देवी दुर्गा जी के पुत्र है और इनके पिता ज्योति निरंजन काल है।।

श्री शिव जी तीन लोक के मालिक है, ये सर्वशक्तिमान परमात्मा नही है ये केवल निमयानुसार कार्य ही कर सकते हैं जिसके भाग्य में जो लिखा है वो ही दे सकते हैं, उससे अधिक ओर कम ये नही कर सकते हैं।।

प्रमाण देखिए देवीभागवत से-👇


🔆 पवित्र गीता जी  के अध्याय 6 के श्लोक 16 मे गीता ज्ञान देने वाले भगवान कह रहे हैं कि अर्जुन - ये साधना भक्ति योग, न तो ज्यादा खाने वाले कि सफल हैं और न बिल्कुल न खाने वाले कि मतलब व्रत करना गीता जी मे मना किया है।।

व्रत करना शास्त्रविरुद्ध साधना है इसे करने में भूखे मरने में कोई लाभ नही है भक्ति मार्ग में, अगर भूखे मरने से ही भगवान की प्राप्ति हो तो जब अकाल पड़ता है तब क्यो लोग मरते है।।

▶️▶️ अधिक जानकारी के लिए अवश्य देखे 

जगत गुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी के मंगल प्रवचन साधना tv रात्रि 7:30 से 8:30 तक।।


Wednesday, July 8, 2020

संत रामपाल जी महाराज जी के संघर्ष की कहानी

संत रामपाल जी महाराज जी के संघर्ष की कहानी


संत रामपाल जी महाराज जी की जीवनी
🔆 रामपाल जी का जन्म 8 सितम्बर 1951 को गांव धनाना जिला सोनीपत हरियाणा में एक किसान परिवार में हुआ। पढ़ाई पूरी करके हरियाणा प्रांत में सिंचाई विभाग में जूनियर इंजिनियर की पोस्ट पर 18 वर्ष कार्यरत रहे। सन् 1988 में परम संत रामदेवानंद जी से दीक्षा प्राप्त की तथा तन-मन से सक्रिय होकर स्वामी रामदेवानंद जी द्वारा बताए भक्ति मार्ग से साधना की तथा परमात्मा का साक्षात्कार किया।

संत रामपाल जी को नाम दीक्षा 17 फरवरी 1988 को फाल्गुन महीने की अमावस्या को रात्राी में प्राप्त हुई। उस समय संत रामपाल जी महाराज की आयु 37 वर्ष थी। उपदेश दिवस (दीक्षा दिवस) को संतमत में उपदेशी भक्त का आध्यात्मिक जन्मदिन माना जाता है।


संत रामपाल जी महाराज जी को नाम दान का आदेश प्राप्त होना

🔆 सन् 1993 में स्वामी रामदेवानंद जी महाराज ने आपको सत्संग करने की आज्ञा दी तथा सन् 1994 में नामदान करने की आज्ञा प्रदान की। भक्ति मार्ग में लीन होने के कारण जे.ई. की पोस्ट से त्यागपत्र दे दिया जो हरियाणा सरकार द्वारा 16.5.2000 को पत्र क्रमांक 3492-3500, तिथि 16.5.2000 के तहत स्वीकृत है। सन् 1994 से 1998 तक संत रामपाल जी महाराज ने घर-घर, गांव-गांव, नगर-नगर में जाकर सत्संग किया। बहु संख्या में अनुयाई हो गये। साथ-साथ ज्ञानहीन संतों का विरोध भी बढ़ता गया। सन् 1999 में गांव करौंथा जिला रोहतक (हरियाणा) में सतलोक आश्रम करौंथा की स्थापना की तथा एक जून 1999 से 7 जून 1999 तक परमेश्वर कबीर जी के प्रकट दिवस पर सात दिवसीय विशाल सत्संग का आयोजन करके आश्रम का प्रारम्भ किया तथा महीने की प्रत्येक पूर्णिमा को तीन दिन का सत्संग प्रारम्भ किया। दूर-दूर से श्रद्धालु सत्संग सुनने आने लगे तथा तत्वज्ञान को समझकर बहुसंख्या में अनुयाई बनने लगे। चंद दिनों में संत रामपाल महाराज जी के अनुयाइयों की संख्या लाखों में पहुंच गई। जिन ज्ञानहीन संतों व ऋषियों के अनुयाई संत रामपाल जी के पास आने लगे तथा अनुयाई बनने लगे फिर उन अज्ञानी आचार्यों तथा सन्तों से प्रश्न करने लगे कि आप सर्व ज्ञान अपने सद्ग्रंथों के विपरीत बता रहे हो।


संत रामपाल जी महाराज जी का नकली धर्म गुरुओं द्वारा विरोध

🔆संत रामपाल जी महाराज जी महऋषि दयानंद सरस्वती नामक एक धर्मगुरु के अज्ञान की पोल जनता तक ला दी, उसके द्वारा बताए गए दिशा निर्देशों को "सत्यार्थ-प्रकाश" नामक पुस्तक में लिखा गया, उस पुस्तक  की तुलना संत रामपाल जी महाराज जी ने वेदो से कर दी, जिससे कि दयानंद सरस्वती जी के अज्ञान की पोल खुल गई।।
ओर ऐसे ही सभी धर्मों के धर्म गुरुओं द्वारा बताए गलत शास्त्रविरुद्ध साधना को बंद करवा दिया, ओर उन नकली धर्म गुरु को ज्ञान में परास्त कर दिया।।



इस तरह के तर्क से निरूत्तर होकर अपने अज्ञान का पर्दा फास होने के भय से उन अंज्ञानी संतों, महंतों व आचार्यो ने सतलोक आश्रम करौंथा के आसपास के गांवों में संत रामपाल जी महाराज को बदनाम करने के लिए दुष्प्रचार करना प्रारम्भ कर दिया तथा 12.7.2006 को संत रामपाल को जान से मारने तथा आश्रम को नष्ट करने के लिए आप तथा अपने अनुयाइयों से सतलोक आश्रम पर आक्रमण करवाया। पुलिस ने रोकने की कोशिश की जिस कारण से कुछ उपद्रवकारी चोटिल हो गये। सरकार ने सतलोक आश्रम को अपने आधीन कर लिया तथा संत रामपाल जी महाराज व कुछ अनुयाइयों पर झूठा केस बना कर जेल में डाल दिया। इस प्रकार 2006 में संत रामपाल जी महाराज विख्यात हुए। भले ही अंजानों ने झूठे आरोप लगाकर संत को प्रसिद्ध किया परन्तु संत निर्दोष है। प्रिय पाठको (नास्त्रोदमस) की भविष्यवाणी को पढ़कर सोचेगें कि संत रामपाल जी को इतना बदनाम कर दिया है, कैसे संभव होगा कि विश्व को ज्ञान प्रचार करेगा। उनसे प्रार्थना है कि परमात्मा पल में परिस्थिती बदल सकता है।

परमेश्वर कबीर जी अपने बच्चों के उद्धार के लिए शीघ्र ही समाज को तत्वज्ञान द्वारा वास्तविकता से परिचित करवाएंगे, 

फिर पूरा विश्व संत रामपाल जी महाराज के ज्ञान का लोहा मानेगा।

अधिक जानकारी के लिए अवश्य देखे जगत गुरु रामपाल जी महाराज जी के मंगल प्रवचन साधना tv पर रात्रि 7:30 से 8:30 तक

Visit- www.jagatgururampalji.org



Tuesday, July 7, 2020

असली ब्राह्मण कौन

असली ब्राह्मण कौन

🔰भारत मे जाति को लेकर बहुत विवाद रहा है भारत देश मे हिन्दू धर्म मे सर्व श्रेष्ठ माने जाने वाले ब्राह्मण जाति है




● इंसान किसी भी जाति धर्म या मजहब से महान नही बनता है,

असली ब्राह्मण कौन 

【कबीर परमात्मा कहते हैं- "ब्राम्हण वही जो ब्रह्म बिछाने"】


भावार्थ:-
ब्राह्मण वही है जो पूर्ण परमात्मा की पूर्ण जानकारी रखता हो, पवित्र धर्मो के सद्ग्रन्थों को मनाता हो और सभी गर्न्थो के आधार पर भक्ति देता हो।।

अधिक जानकारी के लिए अवश्य देखे जगत गुरु रामपाल जी महाराज जी के मंगल प्रवचन साधना tv पर रात्रि 7:30 से 8:30 तक

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Wednesday, July 1, 2020

भारत को आखिर बॉलीवुड ने दिया क्या है ?

भारत को आखिर बॉलीवुड ने दिया क्या है ?

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निवेदन:- एक बार जरूर पढ़ें, बॉलीवुड ने भारत को इतना सब कुछ दिया है, तभी तो आज देश यहाँ है ...

1. बलात्कार गैंग रेप करने के तरीके।
2. विवाह किये बिना लड़का- लड़की का शारीरिक सम्बन्ध बनाना।
3. विवाह के दौरान लड़की को मंडप से भगाना
4. चोरी डकैती करने के तरीके।
5. भारतीय संस्कारों का उपहास उड़ाना।
6. लड़कियों को छोटे कपड़े पहने की सीख देना....जिसे फैशन का नाम देना।
7. दारू सिगरेट चरस गांजा कैसे पिया और लाया जाये।
8. गुंडागर्दी कर के हफ्ता वसूली करना।
9. भगवान का मजाक बनाना और अपमानित करना।
10. माँ बाप को वृध्दाश्रम छोड़ के आना।
11. गाय पालन को मज़ाक बनाना और कुत्तों को उनसे श्रेष्ठ बताना और पालना सिखाना।
12. भगवान का बनाया शुद्ध शाकाहारी भोजन ना करके कोल्ड ड्रिंक और नॉन वेज खाना श्रेष्ठ है।

हमारे देश की युवा पीढ़ी बॉलीवुड को और उसके अभिनेता और अभिनेत्रियों का अपना आदर्श मानती है.....अगर यही बॉलीवुड देश की संस्कृति सभ्यता के आदर्श संत रामपाल जी महाराज जी के सत्संग भारत के सभी चैनलों पर दिखायें तो सत्य मानिये हमारी युवा पीढ़ी सभी  प्रकार की बुराईयों से बची रहेगी,व रास्ते से कभी नहीं भटकेगी...
समझिये ..जानिए और आगे बढिए...
ये संदेश उन युवाओं के लिए है जो फिल्म देखकर अभिनेता,अभिनेत्री की अदाओं को देखकर आकर्षित हो जाते हैं,और उन नौंजवानों को पता भी नहीं कि उनके जीवन में रगों के माध्यम से धीमा जहर भरा जा रहा है |

एक सभ्य समाज तैयार कर रहे संत रामपाल जी महाराज का सत्संग अवश्य सुनें - 
साधना Tv पर शाम 7:30 से 8:30 तक
ओर पढ़िए पुस्तक "जीने की राह"
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Wednesday, June 24, 2020

Story of Nanakdev ji

Spiritual Leader Saint Rampal Ji
Supreme God in Holy Book Guru Granth Sahib (Sikhism)


The light has come to clear the darkness about the Supreme God, the father of all souls, which we address as immortal and almighty god. The secret information about supreme God has been showcased via this article, and the information has been taken from the holy book, "Shri Guru Granth Sahib" (Sikhism). Here is a list of some important questions about Sikhism or Sikh religion, which you must know.

■ What is Sikhism? (Brief History & Information about Sikh Religion).
■ Where do Sikhs worship?
■ List of the Ten Sikh Gurus
■ What text do Sikhs follow and where did it come from?
■ Who are Sikhs? 
■ How do Sikhs view God?
■ God’s names in Sikhism.
■ Do Sikhs believe in God?
■ Do Sikhs believe in heaven or hell?
■ Why don’t Sikhs cut their hair?
■ Who is ‘Waheguru’ or God in Sikhism?
■ Guru of Nanak Dev Ji.

What is Sikhism? (Brief History & Information about Sikh Religion)

Let’s discuss about history and gain information about Sikh religion, or in other words, "What is Sikhism".

Sikhism founded in the 15th-century is one of the four major religions of the world. The main objective of Sikhism is to connect people to the true Name of God. Guru Nanak Jayanti is the most sacred festival of Sikhism and is celebrated by Sikh and other Hindu devotees from all over the world. Guru Nanak Dev described the importance of Guru and said that without a Guru we cannot attain happiness and salvation. Sikhism rejects idolatry, the caste system, ritualism, and asceticism.

Where do Sikhs Worship?

Now let us come to the question "where do Sikhs worship?"

A gurdwara; "gateway to the guru" is a place for worship, or an assembly hall where Sikhs / Raagis (who sing Ragas) recite, sing and explain, the verses from the Guru Granth Sahib, in the presence of a congregation. A Sikh must worship only the abstract form of God. The worship of images or any other object is strictly forbidden.




List of the Ten Sikh Gurus

The Sikh faith was founded by Guru Nanak (1469-1539) and shaped by his nine successors in the sixteenth and seventeenth centuries in South Asia. All Gurus were married and had children except Guru Harkrishan Dev who died at the young age of 8.
 1. Guru Nanak Dev Ji - Guru from 1469 to 1539
2. Guru Angad Dev Ji - Guru from 1539 to 1552
3. Guru Amar Das Sahib Ji - Guru from 1552 to 1574
4. Guru Ram Das Sahib Ji - Guru from 1574 to 1581
5. Guru Arjan Dev Ji - Guru from 1581 to 1606
6. Guru Har Gobind Sahib Ji - - Guru from 1606 to 1644
7. Guru Har Rai Sahib Ji - Guru from 1644 to 1661
8. Guru Har Krishan Sahib Ji - Guru from 1661 to 1664
9. Guru Tegh Bahadur Sahib Ji - Guru from 1665 to 1675
10. Guru Gobind Singh Sahib Ji - Guru from 1675 to 1708
11. Guru Granth Sahib Ji - Guru from 1708 to present
What Text do Sikhs follow and Where did it Come From?

Holy text of the Sikhs is the Guru Granth Sahib. Granth means “large tome or book,” and Sahib denotes its sacred status. There are 3,000 Shabads (all recorded directly by the Sikh Gurus) in the Guru Granth Sahib. The book is addressed as Guru, because it is an authoritative spiritual guide.

It is the repository of all Sikh spiritual heritages, written in Punjabi by the Gurus who led Sikhism in the early days of the religion, beginning in the late 1400s.  Its hymns are written in poetic form, called Shabads, and are sung and recited by Sikhs as the source of both guidance and inspiration for their lives.

Who are Sikhs?

The word Sikh is derived from a Sanskrit word meaning 'disciple', or “one who learns”. Sikhs can pray at any time and any place and aim to get up early, bathe, and then start the day by meditating on God.

How do Sikhs view God?

A sikh’s life is pursued by focusing on remembering the Creator always, earning an honest living as a householder, and sharing one’s abundance with the less fortunate. The praising of His Name is the highest of all practices. It has uplifted many a human soul. It slakes the desire of the restless mind. It imparts an all-seeing vision.

God’s Names in Sikhism

Expressive terms / Names used by Sikhs in the Sikh scriptures in reference to God are as follows: “Allah, Thakur, Prabhu, Swami, Shah, Paatshah, Sahib, Sain (Lord, Master).”

Do Sikhs Believe in God?

Sikh believes each and every person must have a Guru in their human life and that there is only One God who is supreme from all. The fundamental beliefs of Sikhism religion are articulated in the sacred scripture Guru Granth Sahib. General philosophical concepts, according to holybook are practiced such as Karma, Dharma, Maya, and Mukti. Congregational Sikh worship takes place in a Gurdwara.

A few portions of Guru Granth Sahib, Raag Aasaavri, Mehla 1

Sahib mera eko hai eko hai bhaai eko hai ​
Aape roop kare bahu bhaanti, Nanak bapura ev kah (page 350)
Jo tin kia so sachu thia, amrit naam Satguru dia (page 352)
Guru pure te gati mati paai (page 353)​
Boodat jagu dekhia tau dari bhaage
Satiguru raakhe se bad bhaage, Nanak guru ki charnon laage (page 414)
Main guru poochhia apna saacha bichaari Ram (page 439)

गुरु ग्रन्थ साहेब, राग आसावरी, महला 1 के कुछ अंश -

साहिब मेरा एको है। एको है भाई एको है।
आपे रूप करे बहु भांती नानक बपुड़ा एव कह।। (पृ. 350)
जो तिन कीआ सो सचु थीआ, अमृत नाम सतगुरु दीआ।। (पृ. 352)​
गुरु पुरे ते गति मति पाई। (पृ. 353)​
बूडत जगु देखिआ तउ डरि भागे।​
सतिगुरु राखे से बड़ भागे, नानक गुरु की चरणों लागे।। (पृ. 414)
मैं गुरु पूछिआ अपणा साचा बिचारी राम। (पृ. 439)

In the above-mentioned sacred speech, Shri Nanak Ji is himself accepting that Sahib (God) is only one, and my Guru Ji gave updesh Naam mantra to me; He only acquires different forms i.e. He only is SatPurush; He only assumes Jinda form. He only sitting in the form of a weaver (Dhaanak) also plays the role of an ordinary person i.e.devotee.

Seeing the whole world burning in the fire of birth-death and the results of their actions because of doing pooja opposite to the scriptures, running with the fear of the life being wasted, I took refuge in Guru Ji’s feet.

Sikhism is strictly monotheistic and believes that there is only One God. Guru Nanak prefixed the numeral "IK" (ੴ), one) to the syllable Onkar to stress the idea of God's oneness.

 ik oankar sat-nam karata purakh nirabha'u niravair akal murat ajuni saibhan gur prasad.

"There is one supreme being, the eternal reality, the creator, without fear and devoid of enmity, immortal, never incarnated, self-existent, known by grace through the True Guru."

According to their general belief in divine unity; the Creator, the Preserver, and the Destroyer is one. They meditate on the name of the one creator and engage in selfless service. Sikhs imitate Guru Nanak Dev for wearing turbans and almost every Sikh preserves it as an identity of being a Sikh.

Do Sikhs believe in Heaven or Hell?

Sikhs do not believe in heaven or hell as destinations—for Sikhs, heaven can be experienced by taking initiation from Complete Spiritual Guru, by striving for justice for the benefit and prosperity of all. While the suffering and pain caused by lust, rage, greed, attachment, and ego is considered hell on earth. The main purpose of life, according to Sikhism, is to become one with God. In Sikhism, spiritual acts, honest conduct, equality of all humankind and livelihood with Absolute Truth are positive life experiences.

Why don’t Sikhs cut their Hair?

Cutting hair is forbidden for Amritdhari or Khalsa Sikhs or for those who have taken the Amrit initiation in a ceremony during the Sanchar (April 10 - May 10). They are required to keep unshorn hair. However according to the knowledge given by Sant Rampal Ji, spirituality or achieving God has no relation with keeping hair. So it is not mandatory for anyone to keep long hair. Likewise it doesn't even matter if one does keep unshorn hair.

Who is ‘Waheguru’ or God in Sikhism?

Guru Nanak dev, the founder of Sikhism had given us many clues in Guru Granth Saheb that we can attain salvation only from Real Supreme Guru / Tattavdarshi Guru. Supreme Guru plays important role in human life. The real name of God in different native languages is KavirDev (in Sanskrit language in the Vedas), Hakka Kabir (in regional language in Guru Granth Sahib on page no. 721).

He said that:-

"हका कबीर करीम तू, बेऐब परवरदिगार"

"Waheguru", (Wondrous Destroyer of darkness) is the distinctive representation of God's name in the Sikh tradition. It means "Wonderful Teacher" in the Punjabi language.

Information about the Guru of Nanak Dev Ji

In the below-mentioned sacred speech, Shri Nanak Ji is himself accepting that Sahib (Supreme God) is only One, and my Guru ji gave updesh Naam mantra to me; He only acquires different forms i.e. He only is SatPurush; He only assumes Jinda form.

He only sitting in the form of a weaver (Dhaanak) also plays the role of an ordinary person i.e. devotee. Seeing the whole world burning in the fire of birth-death and the results of their actions because of doing pooja opposite to the scriptures, running with the fear of the life being wasted, I took refuge in Guru Ji’s feet.

In Guru Granth Sahib, Raag ‘Siri’ Mehla 1, on Page no. 24, Shabd no. 29

Shabd/Hymn —

Ek suaan dui suaani naal, bhalke bhaunkahi sada biaal
Kud chhura mutha murdaar, dhaanak roop raha kartaar |1|

Mae pati ki pandi na karni ki kaar çuh bigad roop raha bikraal
Tera ek naam taare sansaar, main eho aas eho aadhaar ||

Mukh ninda aakha din raat, par ghar johi neech manaati ||
Kaam krodh tan vasah chandaal, dhaanak roop raha kartaar ||2||

Faahi surat malooki ves, uh thagvaada thaggi des ||
Kharaa siaana bahuta bhaar, dhaanak roop raha kartaar ||3||

Main keeta na jaata haraamkhor, uh kia muh desa dusht chor ||
Nanak neech kah bichaar, dhaanak roop raha kartaar ||4||

Kabir Parmeshwar recited the Shrishti Rachna (Creation of Universe) and said that I am a complete God, my place is in Sachkhand. You are my soul. Kaal (Brahm) distracts all souls with confusing knowledge and is troubling many kinds of beings in their bodies.


Supreme God Kabir

Supreme God Kabir Guru of Nanak Dev ji again said, I will give you Satnaam (recitation of Satyanam / actual mantra) which Kaal (Brahm) has kept secret and is not in any scripture.

 Ehu jeeu bahute janam bharmiaa, ta Satiguru shabad sunaaiya || (Pg 465)

ए ठगवारा ठग्गी  देश,  खरा सयाना भोते भार धानक रूप रहा करतार।


Baba Nanak

emphasizes here on ‘Genuine name’ given by Complete Guru who has bestowed the true mantra on to him (Nanakji) and is saying that this soul (Jeevaatma) kept wandering in the cycle of birth and death for a long time.


Nanak Devji’s Satlok Visit

Shri Nanak Ji requested Kabir Sahib to seek Sachkhand and ultimate One God (Akaal Purush). Then, Kabir Sahib took Shri Nanak Ji's soul to Satyaloka. At Satlok, Shri Nanak Ji saw that Supreme God Kabir Sahib (KavirDev) is sitting in His actual form.

“Hakka Kabir kareem tu, beaeb Parvardigaar
Nanak bugoyad jan tura, tere chaakraan paakhaak”

There is so much brightness in Sachkhand, Shri Nanak saw that an infinitely bright illumined human-like God (who was sitting on the throne) as if in one hair follicle, there is more brightness than the combined light of crore suns and crore moons (but there is no warmth). On his own another form (Jinda Mahatma जिन्दा महात्मा), Kabir Sahib started moving whisk / doing chanvar (चंवर) as a humble servant.

Then Shri Nanak Ji thought that this is the Ultimate God who is sitting on the throne; Kabir will be a servant here, but the lok is different from all. God is very effulgent. While Nanakji is thinking all this, the effulgent form of God stood up and KavirDev sat down on the throne. Then, the actual visible effulgent form of God started moving whisk on Kabir Sahib. Thereafter, Kabir Sahib’s effulgent form vanished into Kabir Sahib.

And only, Supreme God KavirDev is sitting on the throne; and the chavar /Whisk began to drift on its own. Then Nanak Ji said that You are the Master and I recognize you as Waheguru from Satyanaam. This process took three days. Sahib Kabir Ji returned the soul of Nanak to the body. On the third day, Shri Nanak came to his senses. After realizing Kabir Saheb as a God in Satlok, Shri Nanak Ji said ‘ Waheguru’ Satnaam.

“Jhanki dekh kabir ki nanak kiti Wah, WaH sikha k gal padi ab kaun chutave tha.”

Waheguru is a term most often used in Sikhism to refer to God, the Supreme Being or the creator of all.

Kabir Saheb had said :-

गुरु गोविंद दोनों  खड़े, काके लागू पाए, बलिहारी गुरु आपने जिन गोविंद दियो मिलाए



Satyabhakti Mukti Sandesh Sikh Dharm Ki Jankari part-3 satlok Ashram

Wednesday, June 17, 2020

Bible

Bible


यीशु जी भगवान नही थे



यीशु जी की मृतु हुई थी। वह भगवान को चाहने वाली आत्मा थी। भगवान नही थे। भगवान की मृतु नही होती।कबीर भगवान अमर पुरुष है जिन्होंने सृष्टि की रचना की।




परमेश्वर ने छः दिन में सर्व सृष्टी की उत्पत्ति की तथा सातवें दिन विश्राम किया।
पवित्र बाईबल ने सिद्ध कर दिया कि परमात्मा मानव सदृश शरीर में है, जिसने छः दिन में सर्व सृष्टी की रचना की तथा फिर विश्राम किया।



उत्पति विषय में लिखा है कि परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्न किया। इससे सिद्ध है कि प्रभु भी मनुष्य जैसे शरीर युक्त है तथा छः दिन में सृष्टी रचना करके सातवें दिन तख्त पर जा विराजा।




Janamatami:Birthday of Lord Krishna


भारत मे भगवानो के जन्मदिन बडी ही धूमधाम से मनाया जाता है। फिर चाहे शिव भगवान की शिवरात्रि हो,रामचंद्र जी की रामनवमी हो,नानक देव जी का प्रकाश पर्व हो,या फिर कृष्ण जी का जन्मोत्सव जिसे कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है। भारत वर्ष के अलावा विश्व के अन्य राष्ट्रो मे भी मनाया जाता हैं।

कृष्ण लीलाए
श्रीकृष्ण जी ने अपने मामा कंस द्वारा भेजे गए राक्षसों का वध किया और मथुरा वासियों की रक्षा की। 
मोरध्वज के पुत्र को जीवित करना
श्रीकृष्ण जी ने अर्जुन का घंमड दुर करने के लिए मोरध्वज के पुत्र ताम्रध्वज को परिक्षा लेने के लिए उसे आरे से शरीर को २ हिस्सों में कर दिया और उसे फिर से जिंदा कर दिया था। लेकिन लेकिन कबीर परमात्मा ने तो अपने शक्ति से छ: महिने  पूर्व कब्र मे दबा दि गई बच्ची को कब्र मे से जिंदा कर दिया था।
सुदामा की सहायता
श्रीकृष्ण के परम मित्र सुदामा की सहायता किया जिससे उन्हें कुछ धन और एक महल बना दिया जिससे उनका निर्वहन सिर्फ उस जन्म तक ही हो सका,लेकिन परमेश्वर कबीर जी द्वारा अपने शिष्य तैमूर लंग की एक रोटी खाकर उसे सात पीढियों तक का राज प्रदान किया।

अश्वमेध यज्ञ को पूर्ण करना
पाडंवो द्वारा महाभारत के युद्ध के पश्चात एक अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया गया था जिसमें ब्राह्मंड के सभी देवी-देवता, ऋषि महर्षि, ब्रह्मा जी, विष्णु जी,शंकर जी आदि तथा स्वयं श्रीकृष्ण जी भी उपस्थित होने पर भी यज्ञ मैं रखा शंख नहीं बजा था,वह भी पूर्ण परमात्मा द्वारा अपने शिष्य का रूप बनाकर आए और भोजन ग्रहण करने पर ही संभव हो पाया था।

श्री कृष्ण जी की लीलाएं

श्री कृष्ण विष्णु के एक अवतार हैं।  श्री कृष्ण का जन्म मथुरा में देवकी और वासुदेव को जेल में हुआ था।
 भगवान कृष्ण कंस (उसके मामा) को मारने वाले थे और उनकी मृत्यु के डर से कंस ने उसकी बहन देवकी और उसके पति को जेल में डाल दिया था, जहाँ उसने सभी सात बच्चों की हत्या कर दी थी जिन्हें देवकी ने जन्म दिया था।  जब उसने श्री कृष्ण की कल्पना की और आधी रात में उसे जन्म दिया, तो वासुदेव ने नवजात शिशु को जेल से निकालकर रात में गोकुल में नंदलाल के यहाँ ले आया और अपनी नवजात बच्ची को जेल ले आया।  सीखने के बाद, कंस आठवें बच्चे को भी मारने आया, लेकिन बच्ची ने अपने हाथों को उड़ा लिया और उसे विष्णु के अवतार और उसके हत्यारे के जन्म के बारे में चेतावनी दी।  इसके बाद कंस ने कृष्ण को मारने के लिए कई राक्षस भेजे लेकिन हर बार असफल रहा।  आखिरकार जब कृष्ण को अपनी माँ और पिता के बारे में पता चला, तो उन्होंने कंस को मार डाला और उन्हें जेल से रिहा कर दिया।  इन घटनाओं के साक्षी, मथुरा और गोकुल के चारों ओर के लोग उन्हें भगवान के रूप में मानने लगे।
 कृष्ण, विष्णु के अवतार होने के कारण राजसी शक्तियाँ रखते थे जिसके कारण लोगों को विश्वास हो गया था कि वे भगवान हैं।

 ईश्वर कौन है?

 ईश्वर वह है जो अपने बच्चों से बिना शर्त प्यार करता है और यह सुनिश्चित करने के लिए सब कुछ करता है कि वे किसी भी प्रकार के दुःख से पीड़ित न हों और अंततः मोक्ष प्राप्त करें।
 ईश्वर ही एकमात्र ऐसा है जो हमारे पापों को क्षमा करने में सक्षम है, हमारे जीवन काल का विस्तार करता है और हमें वह सब कुछ देता है जो हमारे भाग्य से परे है।
क्या कृष्ण सर्वोच्च भगवान हैं?

 सभी का मानना ​​है कि कृष्ण सर्वोच्च भगवान हैं।  लेकिन यह सच नहीं है।  कृष्ण विष्णु के अवतार हैं और देवी भागवत पुराण में स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि तीनों अवगुण;  ब्रह्मा, विष्णु और महेश अमर नहीं हैं और वे भी जन्म और मृत्यु के चक्र में हैं।  जबकि, वेद बताते हैं कि सर्वोच्च ईश्वर अनन्त है और वह जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त है।  वह ऋतधाम में रहता है - एक ऐसा स्थान, जिसका अपना प्रकाश है और अनन्त है।  वेद यह भी कहते हैं कि जब भगवान पृथ्वी पर उतरते हैं, तो वह कभी भी माता के गर्भ से जन्म नहीं लेते हैं।  वह सीधे कमल के फूल पर एक मानव बच्चे के रूप में उतरता है और युवती गायों को खिलाता है।
श्री कृष्ण का जन्म माता के गर्भ से हुआ था।  यह साबित करता है कि उसे सर्वोच्च भगवान नहीं कहा जा सकता है।

 यदि श्री कृष्ण वास्तव में सर्वोच्च शक्ति थे तो वे महाभारत के दौरान अपने भतीजे अभिमन्यु को मृत्यु से क्यों नहीं बचा सकते थे?

 लोग कहते हैं कि श्री कृष्ण ने भगवद गीता का ज्ञान दिया।  यदि श्री कृष्ण ने भगवद गीता का ज्ञान दिया, तो उन्होंने महाभारत के बाद अर्जुन को गीता ज्ञान देने से इनकार क्यों किया?  इसका कारण सरल है, उन्होंने कभी भी भगवद गीता का ज्ञान नहीं दिया।
 यदि ऐसा था, तो गीता आद्या १lo श्लोक ६२ में क्यों, उन्होंने अर्जुन को किसी अन्य भगवान की शरण लेने के लिए कहा?
 गीता आदित्य 7 श्लोक 18 में सर्वोच्च ईश्वर को उनकी पूजा सबसे बुरी ’क्यों कहा जाएगा?
 गीता पालन 18 श्लोक 66 में श्री कृष्ण एक और ईश्वर की ओर क्यों संकेत कर रहे हैं?
आज सभी पुजारी गीता में लिखी बातों के विपरीत प्रचार कर रहे हैं।  यदि आप वास्तव में भगवद गीता के वास्तविक अर्थ को जानना चाहते हैं, तो ऊपर सूचीबद्ध किए गए ऐसे कई प्रश्नों के उत्तर खोजें, और जानें कि सर्वोच्च देवता कौन है।  कृपया "संत रामपाल जी महाराज" द्वारा आध्यात्मिक प्रवचनों को सुनें ।
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Tuesday, June 9, 2020

परमेश्वर साकार है नर आकार है



परमेश्वर ने छः दिन में सृृष्टी रची तथा सातवें दिन विश्राम किया, प्रभु ने पाँच दिन तक अन्य रचना की, फिर छटवें दिन ईश्वर ने कहा कि हम मनुष्य को अपना ही स्वरूप बनायेंगे। फिर परमेश्वर ने मनुष्य को अपना ही स्वरूप बनाया, नर-नारी करके उसकी सृृष्टी की। फिर ईश्वर ने मनुष्यों के खाने के लिए केवल फलदार वृृक्ष तथा बीजदार पौधे दिए। जो तुम्हारे भोजन के लिए हैं। छः दिन में पूरा कार्य करके परमेश्वर ऊपर तख्त पर जा विराजा अर्थात् विश्राम किया। ईश्वर ने प्रथम आदम बनाया फिर उसकी पसली निकाल कर नारी (हव्वा) बनाई तथा दोनों को एक वाटिका में छोड़कर तख्त पर जा बैठे। फिर पृृष्ठ नं.  8  पर लिखा है कि ईश्वर ने मनुष्य जाति के खाने के लिए फलदार पेड़ तथा बीजदार पौधे बनाए और वन प्राणियों के लिए घास व पौधे बनाए। भगवान ने मनुष्य को अपना प्रति रूप बनाया। इससे स्वसिद्ध है कि भगवान (अल्लाह) आकार में है और वह मनुष्य जैसा है। वह पूर्ण परमात्मा तो यहाँ तक रचना छः दिन में करके सातवेंं दिन अपने सत्यलोक में तख्त पर विराजमान हो गया। इसके बाद अव्यक्त प्रभु (काल/ज्योति निरंजन) की भूल-भुलईयाँ प्रारम्भ हो गई।
पवित्रा बाईबल में लिखा है कि हजरत आदम के काईन तथा हाबिल दो पुत्रा थे। हाबिल भेड़ बकरियाँ पाल कर निर्वाह कर रहा था तथा काईन खेती करता था। एक दिन काईन अपनी पहली फसल का कुछ अंश प्रभु के लिए ले गया। प्रभु ने काईन की भेंट स्वीकार नहीं की क्योंकि काईन का दिल पाक नहीं था। हाबिल अपने भेड़ का पहलौंठा मेंमना(बच्चा) भेंट के लिए लेकर प्रभु के पास गया, जो प्रभु ने स्वीकार कर लिया। इस बात से काईन क्रोधित हो गया। वह अपने छोटे भाई हाबिल को बहका कर जंगल में ले गया, वहाँ उसकी हत्या कर दी। प्रभु ने पूछा काईन तेरा भाई कहाँ गया? काईन ने कहा मैं क्या उसके पीछे-पीछे फिरता हूँ

इस से काईन को द्वेष हुआ तथा अपने छोटे भाई को मार दिया। कुछ समय के बाद आदम व हव्वा से एक पुत्रा हुआ उसका नाम सेत रखा। सेत को फिर पुत्रा हुआ उसका नाम एनोस रखा। उस समय से लोग प्रभु का नाम लेने लगे। विचार करें - जहाँ से पवित्रा ईसाई व मुसलमान धर्म प्रथम पुरूष के वंश की शुरूआत हुई वहीं से मार-काट लोभ और लालच द्वेष परिपूर्ण है। आगे चलकर इसी परंपरा में ईसा मसीह जी का जन्म हुआ। इनकी पूज्य माता जी का नाम मरियम तथा पूज्य पिता जी का नाम यूसुफ था। परन्तु मरियम को गर्भ एक देवता से रहा था। इस पर यूसुफ ने आपत्ति की तथा मरियम को त्यागना चाहा तो स्वपन में (फरिश्ते) देवदूत ने ऐसा न करने को कहा तथा यूसुफ ने डर के मारे मरियम का त्याग न करके उसके साथ पति-पत्नी रूप में रहे। देवता से गर्भवती हुई मरियम ने ईसा को जन्म दिया। हजरत ईसा से पवित्रा ईसाई धर्म की स्थापना हुई। ईसा मसीह के नियमों पर चलने वाले भक्त आत्मा ईसाई कहलाए तथा पवित्रा ईसाई धर्म का उत्थान हुआ। प्रमाण के लिए कुरान शरीफ में सूरः मर्यम-19  में तथा पवित्रा बाईबल में मती रचित सुसमाचार मती=1ः25  पृृष्ठ नं.  1-2  पर। हजरत ईसा जी को भी पूर्ण परमात्मा सत्यलोक से आकर मिले तथा एक परमेश्वर का मार्ग समझाया। इसके बाद ईसा जी एक ईश्वर की भक्ति समझाने लगे। लोगों ने बहुत विरोध किया। फिर भी वे अपने मार्ग से विचलित नहीं हुए। परन्तु बीच-बीच में ब्रह्म(काल/ज्योति निरंजन) के फरिश्ते हजरत ईसा जी को विचलित करते रहे तथा वास्तविक ज्ञान को दूर रखा। हजरत यीशु का जन्म तथा मृृत्यु व जो जो भी चमत्कार किए वे पहले ब्रह्म(ज्योति निरंजन) के द्वारा निर्धारित थे। यह प्रमाण पवित्रा बाईबल में है कि एक व्यक्ति जन्म से अंधा था। वह हजरत यीशु मसीह के पास आया। हजरत जी के आशीर्वाद से उस व्यक्ति की आँखें ठीक हो गई। शिष्यों ने पूछा हे मसीह जी इस व्यक्ति ने या इसके माता-पिता ने कौन-सा ऐसा पाप किया था जिस कारण से यह अंधा हुआ तथा माता-पिता को अंधा पुत्रा प्राप्त हुआ। यीशु जी ने कहा कि इसका कोई पाप नहीं है जिसके कारण यह अंधा हुआ है तथा न ही इसके माता-पिता का कोई पाप है जिस कारण उन्हें अंधा पुत्रा प्राप्त हुआ। यह तो इसलिए हुआ है कि प्रभु की महिमा प्रकट करनी है। भावार्थ यह है कि यदि पाप होता तो हजरत यीशु आँखे ठीक नहीं कर सकते थे। यह सब काल ज्योति निरंजन (ब्रह्म) का सुनियोजित जाल है। जिस कारण उसके द्वारा भेजे अवतारों की महिमा बन जाए तथा आस पास के सभी प्राणी उस पर आसक्त होकर उसके द्वारा बताई

ब्रह्म साधना पर अटल हो जाऐं। जब परमेश्वर का संदेशवाहक आए तो कोई भी विश्वास न करे। जैसे हजरत ईसा मसीह के चमत्कारों में लिखा है कि एक प्रेतात्मा से पीडि़त व्यक्ति को ठीक कर दिया। यह काल स्वयं ही किसी प्रेत तथा पित्तर को प्रेरित करके किसी के शरीर में प्रवेश करवा देता है। फिर उसको किसी के माध्यम से अपने भेजे दूत के पास भेजकर प्रेत को भगा देता है। उसके अवतार की महिमा बन जाती है। या कोई साधक पहले का भक्ति युक्त होता है। उससे भी ऐसे चमत्कार उसी की कमाई से करवा देता है तथा उस साधक की महिमा करवा कर हजारों को उसका अनुयाई बनवा कर काल जाल में फंसा देता है तथा उस पूर्व भक्ति कमाई युक्त साधक की कमाई को समाप्त करवा कर नरक में डाल देता है। इसी तरह का उदाहरण पवित्रा बाईबल ‘शमूएल‘ नामक अध्याय  16ः14-23  में है कि शाऊल नामक व्यक्ति को एक प्रेत दुःखी करता था। उसके लिए बालक दाऊद को बुलाया जिससे उसको कुछ राहत मिलती थी। क्योंकि हजरत दाऊद भी ज्योति निरंजन का भेजा हुआ पूर्व शक्ति युक्त साधक पूर्व की भक्ति कमाई वाला था। जिसको ‘जबूर‘ नामक किताब ज्योति निरंजन/ब्रह्म ने बड़ा होने पर उतारी। हजरत ईसा मसीह की मृृत्यु  30  वर्ष की आयु में हुई जो पूर्व ही निर्धारित थी। स्वयं ईसा जी ने कहा कि मेरी मृृत्यु निकट है तथा तुम (मेरे बारह शिष्यों) में से ही एक मुझे विरोधियों को पकड़वाएगा। उसी रात्रा में सर्व शिष्यों सहित ईसा जी एक पर्वत पर चले गए। वहाँ उनका दिल घबराने लगा। अपने शिष्यों से कहा कि आप जागते रहना। मेरा दिल घबरा रहा है। मेरा जी निकला जा रहा है। मुझे सहयोग देना। ऐसा कह कर कुछ दूरी पर जाकर मुंह के बल पृृथ्वी पर गिरकर प्रार्थना की (38,39), वापिस चेलों के पास लौटे तो वे सो रहे थे। यीशु ने कहा क्या तुम मेरे साथ एक पल भी नहीं जाग सकते। जागते रहो, प्रार्थना करते रहो, ताकि तुम परीक्षा में फेल न हो जाओ। मेरी आत्मा तो मरने को तैयार है, परन्तु शरीर दुर्बल है। इसी प्रकार यीशु मसीह ने तीन बार कुछ दूर जाकर प्रार्थना की तथा फिर वापिस आए तो सभी शिष्यां को तीनों बार सोते पाया। ईसा मसीह के प्राण जाने को थे, परन्तु चेले राम मस्ती में सोए पड़े थे। गुरु जी की आपत्ति का कोई गम नहीं। तीसरी बार भी सोए पाया तब कहा मेरा समय आ गया है, तुम अब भी सोए पड़े हो। इतने में तलवार तथा लाठी लेकर बहुत बड़ी भीड़ आई तथा उनके साथ एक ईसा मसीह का खास यहूंदा इकसरौती नामक शिष्य था, जिसने तीस रूपये के लालच में अपने गुरु जी को विरोधियों के हवाले कर दिया।(मत्ती  26ः24-55  पृृष्ठ  42-44) उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि पुण्यात्मा ईसा मसीह जी को केवल अपना पूर्व का निर्धारित जीवन काल प्राप्त हुआ जो उनके विषय में पहले ही पूर्व धर्म शास्त्रों में लिखा था। ‘‘मत्ती रचित समाचार‘‘ पृृष्ठ  1  पर लिखा है कि याकुब का पुत्रा युसूफ था। युसूफ ही मरियम का पति था। मरियम को एक फरिश्ते से गर्भ रहा था। तब हजरत ईसा जी का जन्म हुआ समाज की दृृष्टि में ईसा जी के पिता युसूफ थे। (मत्ती  1ः1-18) तीस (30) वर्ष की आयु में ईसा मसीह जी को शुक्रवार के दिन सलीब मौत (दीवार) के साथ एक   आकार के लकड़ के ऊपर ईसा को खड़ा करके हाथों व पैरों में मेख (मोटी कील गाड़ दी। जिस कारण अति पीड़ा से ईसा जी की मृृत्यु हुई। तीसरे दिन रविवार को ईसा जी फिर से दिखाई देने लगे।  40  दिन (चालीस) कई जगह अपने शिष्यों को दिखाई दिए। जिस कारण भक्तों में परमात्मा के प्रति आस्था दृृढ़ हुई। वास्तव में पूर्ण परमात्मा ने ही ईसा जी के रूप में प्रकट होकर प्रभु भक्ति को जीवित रखा था। काल तो चाहता है यह संसार नास्तिक हो जाए। परन्तु पूर्ण परमात्मा ने यह भक्ति वर्तमान समय तक जीवित रखनी थी। अब यह पूर्ण रूप से फैलेगी। उस समय के शासक(गवर्नर) पिलातुस को पता था कि ईसा जी निर्दोष हैं परन्तु फरीसियों अर्थात् मूसा के अनुयाईयों के दबाव में आकर सजा सुना दी थी।

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दहेज का खात्मा

संत रामपाल जी महाराज जी इस दहेज जैसी बुराइयों को खत्म करके। समाज सुधार का कार्य कर रहे हैं।
 दहेज को खत्म अमीर पैसे वाले व्यक्तियों ने दहेज प्रथा को शुरू की थी और भुगतना पड़ रहा है गरीब व्यक्तियों को। अब दहेज प्रथा बन्द होने चाहिए।
  
जैसे बेटी के विवाह में बड़ी बारात का आना, दहेज देना, यह व्यर्थ परंपरा है। जिस कारण से बेटी परिवार पर भार मानी जाने लगी है और उसको गर्भ में ही मारने का सिलसिला शुरू है जो माता-पिता के लिए महापाप का कारण बनता है। बेटी देवी का स्वरूप है। हमारी कुपरम्पराओं ने बेटी को दुश्मन बना दिया।
दहेज एक खतरनाक बीमारी है। इसको जड़ से खत्म करें। दहेज मुक्त विवाह करें जैसे सतगुरु रामपाल जी महाराज जी के शिष्य करते हैं।

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Wednesday, June 3, 2020

KabirPrakatDiwasNotJayanti


सतगुरु रामपाल जी महाराज जी प्रमाणित करके बताते हैं 

कबीर साहेब का प्रकट दिवस होता है, जयंती नहीं!
सन् 1398 (विक्रमी संवत् 1455) ज्येष्ठ मास शुद्धि पूर्णमासी को ब्रह्ममूहूर्त में अपने सत्यलोक से सशरीर आकर परमेश्वर कबीर बालक रूप बनाकर लहरतारा तालाब में कमल के फूल पर विराजमान हुए।
पूर्ण परमात्मा का माँ के गर्भ से जन्म नहीं होता।

कबीर साहेब का जन्म नहीं होता!
आदरणीय गरीब दास जी ने भी अपनी वाणी के माध्यम से यह बताया है कि परमात्मा कबीर जी की कोई माता नही थी अर्थात उनका जन्म माँ के गर्भ से नही हुआ।
गरीब, अनंत कोटि ब्रह्मांड में, बंदीछोड़ कहाय। 
सो तो एक कबीर हैं, जननी जन्या न माय।।

कबीर परमात्मा सशरीर सतलोक से आते हैं, उनका जन्म नहीं होता।
जो देव जन्म मृत्यु के चक्कर में है उनकी जयंती मनाई जाती है लेकिन पूर्ण परमात्मा कबीर जी का प्रकट दिवस मनाया जाता है क्योंकि वो सत्यलोक से सशरीर पृथ्वी पर प्रकट होते हैं -
"गगन मंडल से उतरे सतगुरु पुरूष कबीर
जलज माहि पौडन किए, सब पीरन के‌ पीर।।

कबीर परमात्मा का प्रकट दिवस होता, जयंती नहीं!
पूर्ण परमात्मा कबीर जी का का जन्म कभी मां के गर्भ से नहीं होता। 
इसलिए उनका प्रकट दिवस मनाया जाता है 
कबीर जी अपने प्रकट होने के बारे में कहते है -
न मेरा जन्म न गर्भ बसेर, बालक बन दिखलाया।
काशी नगर जल कमल पर डेरा तहां जुलाहे ने पाया।।
कबीर साहेब जयंती VS कबीर साहेब प्रकट दिवस
जयंती तो उसकी मनाई जाती है जिसकी जन्म- मृत्यु होती है, लेकिन "कबीर साहेब" अविनाशी भगवान हैं, जिनकी कभी भी जन्म-मृत्यु नहीं होती।

कबीर साहेब जयंती VS कबीर साहेब प्रकट दिवस
कबीर साहेब ने अपनी वाणियों में स्पष्ट किया है, कि उनका जन्म नहीं होता।
ना मेरा जन्म न गर्भ बसेरा, बालक बन दिखलाया।
काशी नगर जल कमल पर डेरा, तहाँ जुलाहे ने पाया।
माता पिता मेरे कछु नाही, ना मेरे घर दासी।
जुलहे का सुत आन कहाया, जगत करे मेरी हांसी।।
🎆कबीर साहेब जयंती VS कबीर साहेब प्रकट दिवस
कबीर साहेब चारो युगों में प्रकट होकर पृथ्वी लोक पर आते हैं। उनका कभी माँ के गर्भ से जन्म नहीं होता। कमल के फूल पर प्रकट होते हैं। इसीलिए इसे जयंती नही प्रकट दिवस के रूप में मनाया जाता है।
हिन्दू मुस्लिम के बीच में, मेरा नाम कबीर।
आत्म उद्धार कारणे, अविगत धरा शरीर।।
कबीर साहेब ने इस वाणी में कहा है कि लोगो का आत्म उद्धार करने के लिए परमात्मा इस पृथ्वी पर प्रकट होते हैं।

सभी देवों का जन्म दिवस तो आखिर कबीर जी का प्रकट दिवस क्यों ?
पूर्ण परमात्मा कबीर जी के अलावा सभी देव जन्म-मृत्यु में हैं और प्रकट दिवस सिर्फ अविनाशी परमात्मा का ही मनाया जाता है क्योंकि वह जन्म नहीं लेते बल्कि हर युग में कमल के फूल पर प्रकट होते हैं।
जयंती और प्रकट दिवस में अंतर जानें
जो मां के गर्भ से जन्म लेते हैं, उनका जन्म दिवस मनाया जाता है लेकिन पूर्ण परमात्मा कबीर जी का प्रकट दिवस मनाया जाता है क्योंकि वह अविनाशी परमात्मा है।
सिर्फ कबीर जी का ही प्रकट दिवस क्यों 
   ऋग्वेद मंडल नंबर 9 सूक्त 1 मंत्र 9 में प्रमाण है कि वह परमात्मा सतलोक से शिशु रूप धारण करके प्रकट होता है और कुंवारी गायों के दूध से उसकी परवरिश होती है ।
ऋग्वेद  मंडल नंबर 9 सूक्त 96 मंत्र 17 में भी वर्णन है कि पूर्ण परमात्मा कबीर जी जान बूझकर बालक रूप में प्रकट होते है।
इसलिए उनका प्रकट दिवस मनाया जाता है 

जिनका अवतरण होता है उनका जन्म दिवस नहीं होता।
कबीर परमात्मा हर युग में शिशु रूप में कमल के फूल पर अवतरित होते हैं, इसलिए उनका प्रकट दिवस मनाया जाता है
चारों युगों में सिर्फ कबीर परमात्मा के प्रकट होने के ही प्रमाण हैं
सतयुग में सत सुकृत नाम से,
त्रेता में मुनीन्द्र नाम से, 
द्वापर में करुणामय नाम से,
और कलयुग में अपने असली नाम कबीर नाम से प्रकट होते हैं।
बाकी सभी देव मां के गर्भ से जन्म लेते हैं।
कबीर जयंती और कबीर प्रकट दिवस में अंतर
जो जन्मता है उसकी जयंती मनाई जाती है, जो अजन्मा है, स्वयंभू है, वह प्रकट होता है। कबीर साहेब, अमर पुरूष लीला करते हुए बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होते हैं

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कबीर साहिब का जीवन

परमेश्वर कबीर बन्दी छोड़ जी का धरती पर अवतरण सन् 1398 विक्रमी संवत् 1455 ज्येष्ठ मास पूर्णमासी (शुद्धि) को काशी शहर के बाहर ‘‘लहर तारा‘‘ नामक...