सी प्रकार अष्टानन्द जी को उस प्रकाश पंुज्ज में शिशु रूप दिखाई दिया था। इसका वास्तविक रहस्य जानने के लिए स्वामी अष्टानन्द जी उसी समय उठ कर स्वामी रामानन्द जी के पास चले गये।
काशी शहर में एक नीरू (नूर अली) नामक जुलाहा रहता था। उसकी पत्नी का नाम नीमा (नीयामत) था। वे निःसंतान थे। वे इसी जन्म में हिन्दू ब्राह्मण थे। उनको बलपूर्वक मुसलमानों ने धर्म परिवर्तन करके मुसलमान बना दिया था। उनका गंगा में स्नान करना भी मना कर दिया था। वर्षा के मौसम में गंगा दरिया का स्वच्छ जल लहरों द्वारा उछल कर गऊ घाटों में से बाहर आकर तारा नाम नीचे स्थान में भर जाता था जो एक सरोवर का रूप ले लेता था। पूरे वर्ष वह जल स्वच्छ रहता था। इस कारण से उस तालाब को ‘‘लहर तारा‘‘ नाम से जाना जाने लगा। नीरू जिनका पूरा नाम नूर अली रखा गया था परन्तु वे नीरू नाम से ही अधिक जाने जाते थे तथा उनकी पत्नी ‘‘नीमा‘‘ जिनका पूरा नाम नीयामत रखा गया था परन्तु ‘‘नीमा‘‘ नाम से अधिक प्रसिद्ध हुई।
वे दोनों पति-पत्नी भी उस लहर तारा सरोवर में प्रतिदिन ब्रह्म महूर्त में स्नान करने के लिए जाते थे। (ब्रह्म महूर्त सूर्य उदय से लगभग 1) घण्टा पूर्व के समय को कहा जाता है) उन्होंने उस सरोवर में कमल के फूल पर एक शिशु को देखा और तुरन्त उठाकर अपने घर ले गये। जुलाहे के घर पर पलने की लीला करने व बड़े होकर जुलाहे का कार्य करके लीला करने के कारण परमेश्वर कबीर जी जुलाहा (धाणक) कहलाऐ।